सम्मेलन के अंतिम दिन पंडित डॉ. राम देशपांडे, ने अपने शास्त्रीय संगीत गायन से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध

चंडीगढ़ (मीडिया जंक्शन-):: इंडियन नेशनल थियेटर द्वारा दुर्गा दास फाउंडेशन के सहयोग से सेक्टर 26 स्थित स्ट्रोबरी फील्डस हाई स्कूल के सभागार में तीन दिवसीय 47 वें वार्षिक चंडीगढ़ संगीत सम्मेलन के अंतिम दिन शास्त्रीय संगीत गायक पंडित डॉ. राम देशपांडे, ने अपने गायन की कर्णप्रिय लहरियों से श्रोताओं का समां बांधा और खूब प्रशंसा बटोरी।

कार्यक्रम से पूर्व इंडियन नेशनल थिएटर के प्रेसिडेंट अनिल नेहरू व मानद सैक्रेटरी विनीता गुप्ता ने सभी संगीत श्रोताओं का स्वागत किया।
इस अवसर पर शास्त्रीय संगीत गायक पंडित डॉ. राम देशपांडे, ने अपने गायन की प्रस्तुति दी। उन्होंने राग मियां की तोड़ी से किया, जिसे विलंबित झूमरा ताल में प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति में उन्होंने ‘सब निस बरजोरी’ को बड़े ही भावपूर्ण अंदाज़ में गाया, जिसने वातावरण को गहराई और गंभीरता से भर दिया। इसके बाद उन्होंने द्रुत तीन ताल में ‘कान्हा मुरलिया बाजे’ प्रस्तुत किया, जिसकी मधुर लय और गति ने श्रोताओं को सहज ही बांध लिया।

गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने राग देवगिरी में विलंबित लय में ‘या बना ब्याहन आया’ प्रस्तुत किया। इसके बाद द्रुत ख्याल में ‘मानो जरा अब मान लो’ गाकर उन्होंने कार्यक्रम में एक चंचल और प्रफुल्लित रंग भरा। इसके पश्चात ‘ सांवरे अई जइयो’ सुनाकर उन्होंने गायन की श्रृंखला को और भी जीवंत बना दिया।

कार्यक्रम का समापन राग भैरवी में ‘माना तू कहे ना धीरे-धरे’ के साथ हुआ। उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन एक अत्यंत अनोखी प्रस्तुति से किया। यह था उनका स्वयं रचित “वंदे मातरम्”, जिसे उन्होंने 24 अलग-अलग रागों में पिरोकर रागमाला के रूप में प्रस्तुत किया। इस अद्वितीय संगीतमयी रचना ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया और सभागार में देशभक्ति तथा कला का अद्भुत संगम रच दिया।

उनके साथ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अर्चना देशपांडे ने गायन में बहुत सुंदर गायन समर्थन दिया। तबले पर विनोद लेले तथा हारमोनियम पर विनय मिश्रा ने जबकि तानपुरे पर तरुण गर्ग व नीशू शर्मा ने बखूबी संगत की।

पंडित डॉ. राम देशपांडे, भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा ग्वालियर घराने के ध्वजवाहक अग्रणी गायक हैं। उनकी संगीत शिक्षा श्री चेपे, श्री पानके और पं. प्रभाकर देशकर से आरंभ हुई। इसके बाद पं. यशवंतबुआ जोशी और पं. उल्हास कशालकर के मार्गदर्शन में उन्होंने ग्वालियर और जयपुर घरानों की परंपरा को अपनाया। साथ ही पं. बाबनराव हलदंकर से आगरा घराने का ज्ञान तथा पं. यशवंत महाले से भातखंडे परंपरा की शिक्षा प्राप्त की।उनकी गायकी की विशेषता मधुर और परिपक्व स्वर, गमक, बहलावा और मींड जैसी अलंकरणों पर अधिकार तथा ताल और तानों की विविधता है। उनके रचनात्मक संग्रह में लोकप्रिय और दुर्लभ रागों का अनूठा संयोजन है।

इस अवसर पर इंडियन नेशनल थियेटर के प्रेसिडेंट अनिल नेहरू व सैकेटरी विनीता गुप्ता ने बताया कि शहर में आयोजित हुए इस तीन दिवसीय सम्मेलन में शहरवासियों ने शास्त्रीय संगीत के प्रति जो प्यार दिखाया वह सरहानीय है। उन्होंने कहा कि संगीत सम्मेलन की यह कड़ी भविष्य में भी इस प्रकार से अपनी परम्परा निभाने में कायम रहेगी। उन्होंने सभी कलाकारों द्वारा सम्मेलन को चार चांद लगाने पर अपना आभार जताया। कार्यक्रम में मंच का संचालन अतुल दुबे ने किया।

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